बंद किताब हूं अब मुझे पढ़ने की कोशिश ना कर, हैं कई राज दफन इसके सीने में अब इसके धड़कनों को छेड़ने की कोशिश ना कर, धूल में लिपटे पन्नों पे लिखी है कुछ टूटे ख्वाब कुछ अधूरी ख्वाहिशें अब उसे तू फिर से जगाने की कोशिश ना कर, कुछ अपनों के गम कुछ दोस्तों के जख्म तो कुछ खुद की गलतियां लिखी है काली स्याह से अब उसे तू नासमझ के समझने की कोशिश ना कर, है दर्ज कई खुशियों भी मेरे बीते दिनों की अब उसे तू फिर से याद दिलाने की कोशिश ना कर, जो था कल मैं मेरा मुझमें अब दफन हो चुका है इस धूल से लिपटी किताब में, अब उसे तू फिर से पढ़ने की कोशिश ना कर। बंद किताब हूं अब मुझे तू पढ़ने की कोशिश ना कर!!!