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मिट्टी के टुकडो की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे ,

मिट्टी के टुकडो की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे ,
मानव हो तुम मानव जग में  , मानव कब कहलाओगे 
जिसें मानते धरती माता ,  अब उसके लाल मिटाओगे
मिट्टी के टुकड़ो की खातिर....१

इतनी दौलत लेकर भी तुम , फिर तुम कितना  चल पाओगे 
राह नहीं है इतनी सीधी , तुम कदम कदम गश खाओगे  
अपने प्राणों की फिर रक्षा , बोलो कैसे कर पाओगे 
मिट्टी के टुकड़ों की खातिर ,......२

जिसे मानते हो तुम लोहा , कभी जरा उससे भी पूछो 
कितने घर शमशान हुए है , बाहर बैठी माँ से पूछो 
पूछो इन शस्त्रों से मुडकर , क्या फिर जीवन दे पाओगे
मिट्टी के टुकड़ों की खातिर .....३

जिसका जो भी धर्म यहां था , वो सभी यहां अपनाया था 
अपने अपने कर्म लिखाकर , वह भी प्रभु से आया था
अब करके संहार यहाँ तुम ,तुम क्या इनको दिखलाओगे 
मिट्टी के टुकडों की खातिर ......४

मिट्टी के टुकड़ों की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे .....

                          महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिट्टी के टुकडो की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे ,
मानव हो तुम मानव जग में  , मानव कब कहलाओगे 
जिसें मानते धरती माता ,  अब उसके लाल मिटाओगे
मिट्टी के टुकड़ो की खातिर....१

इतनी दौलत लेकर भी तुम , फिर तुम कितना  चल पाओगे 
राह नहीं है इतनी सीधी , तुम कदम कदम गश खाओगे  
अपने प्राणों की फिर रक्षा , बोलो कैसे कर पाओगे
मिट्टी के टुकडो की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे ,
मानव हो तुम मानव जग में  , मानव कब कहलाओगे 
जिसें मानते धरती माता ,  अब उसके लाल मिटाओगे
मिट्टी के टुकड़ो की खातिर....१

इतनी दौलत लेकर भी तुम , फिर तुम कितना  चल पाओगे 
राह नहीं है इतनी सीधी , तुम कदम कदम गश खाओगे  
अपने प्राणों की फिर रक्षा , बोलो कैसे कर पाओगे 
मिट्टी के टुकड़ों की खातिर ,......२

जिसे मानते हो तुम लोहा , कभी जरा उससे भी पूछो 
कितने घर शमशान हुए है , बाहर बैठी माँ से पूछो 
पूछो इन शस्त्रों से मुडकर , क्या फिर जीवन दे पाओगे
मिट्टी के टुकड़ों की खातिर .....३

जिसका जो भी धर्म यहां था , वो सभी यहां अपनाया था 
अपने अपने कर्म लिखाकर , वह भी प्रभु से आया था
अब करके संहार यहाँ तुम ,तुम क्या इनको दिखलाओगे 
मिट्टी के टुकडों की खातिर ......४

मिट्टी के टुकड़ों की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे .....

                          महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिट्टी के टुकडो की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे ,
मानव हो तुम मानव जग में  , मानव कब कहलाओगे 
जिसें मानते धरती माता ,  अब उसके लाल मिटाओगे
मिट्टी के टुकड़ो की खातिर....१

इतनी दौलत लेकर भी तुम , फिर तुम कितना  चल पाओगे 
राह नहीं है इतनी सीधी , तुम कदम कदम गश खाओगे  
अपने प्राणों की फिर रक्षा , बोलो कैसे कर पाओगे

मिट्टी के टुकडो की खातिर , तुम कितना लहू बहाओगे , मानव हो तुम मानव जग में , मानव कब कहलाओगे जिसें मानते धरती माता , अब उसके लाल मिटाओगे मिट्टी के टुकड़ो की खातिर....१ इतनी दौलत लेकर भी तुम , फिर तुम कितना चल पाओगे राह नहीं है इतनी सीधी , तुम कदम कदम गश खाओगे अपने प्राणों की फिर रक्षा , बोलो कैसे कर पाओगे #कविता #WritersSpecial