घिस रहा सच है दिवाला हो गया है। झूठ का अब बोल वाला हो गया है। भूख से मरते ग़रीबों की फिकर क्या दूर मुख से अब निवाला हो गया है। भूख से सब जल मरे पहले उसे क्या छीन कर रोटी हवाला हो गया है। भूल से करना नहीं सच को उजागर वह सितमगर और ज्वाला हो गया है। मौत का सौदा किया बनता रहमगर वो निजाम शराबी कलाला हो गया है। छोड़ दो बस वक्त पे यदि हो जगे तुम। हर सितम "केयल"सवाला हो गया है। लौट के आओ यहां पर तुम खुशी से मन मेरा मंदिर शिवाला हो गया है। के एल महोबिया ©K L MAHOBIA #mahashivaratri के एल महोबिया