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याद है मुझे वो नैराशय और हताशा वाले दिन ज़ो मुझे

याद  है मुझे वो नैराशय  और  हताशा वाले दिन
ज़ो मुझे  मरने के लिये प्रेरित करते थे कभी    
लेकिन जबसे मेरी  मानसिकता मे  आशावादी विचारधारा
की घुसपैठ हुईहै .... तबसे मैने  खुलकर जीने का मन बना लिया है
और अबमूझे न जाने क्यों ये दुनिया खूबसूरत लगने लगी है
और अब मुझे इस जगत के साथ.जगत का प्रत्येक
प्राणी भी प्यारा लगने लगा है.... अब मुझे इस धरती की
लालाती  संध्याये और नभ का सिंदूरी  क्षतिज़ भी
भाने लगा है..... सूर्य के  चारो तरफ घूमती हुई ये पृथ्वी.
और ग्रहो की चाल... और ये अबाधित  अनंतता का
चमत्कार मेरीलघुता. क़ो प्रिय लगने लगा है 
और मुझमे इस विराट के प्रति 
 एकात्मकता  की  एक तीव्र
लालसा का संचार  होने लगा है..
. कदाचित दृष्टि बदलने से ही  सृष्टि भी बदल जाती  है
इसका  आभास भी मुझे होने लगा है

©Parasram Arora दृष्टि  बनाम सृष्टि
याद  है मुझे वो नैराशय  और  हताशा वाले दिन
ज़ो मुझे  मरने के लिये प्रेरित करते थे कभी    
लेकिन जबसे मेरी  मानसिकता मे  आशावादी विचारधारा
की घुसपैठ हुईहै .... तबसे मैने  खुलकर जीने का मन बना लिया है
और अबमूझे न जाने क्यों ये दुनिया खूबसूरत लगने लगी है
और अब मुझे इस जगत के साथ.जगत का प्रत्येक
प्राणी भी प्यारा लगने लगा है.... अब मुझे इस धरती की
लालाती  संध्याये और नभ का सिंदूरी  क्षतिज़ भी
भाने लगा है..... सूर्य के  चारो तरफ घूमती हुई ये पृथ्वी.
और ग्रहो की चाल... और ये अबाधित  अनंतता का
चमत्कार मेरीलघुता. क़ो प्रिय लगने लगा है 
और मुझमे इस विराट के प्रति 
 एकात्मकता  की  एक तीव्र
लालसा का संचार  होने लगा है..
. कदाचित दृष्टि बदलने से ही  सृष्टि भी बदल जाती  है
इसका  आभास भी मुझे होने लगा है

©Parasram Arora दृष्टि  बनाम सृष्टि

दृष्टि बनाम सृष्टि #कविता