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निकल चुकि है वह गांव सहर मे नही आयेगी । वह दिखने म

निकल चुकि है वह गांव सहर मे नही आयेगी ।
वह दिखने मे चाँद सि है दोपहर मे नही आयेगी।

उस को समुन्दरों मे रहने की आदत है ।
तुम लाख निकालो नहर नहर मे नही आयेगी ।

वह मरिज़-ए-इश्क वालों की दवा है यारों ! 
उस की जोड़ति कभी  ज़हर मे नही आयेगी ।

अगर हो कम पूंजी तो उस पे दावा नही करना।
अमीर ज़ादि है थोड़ी सि महर मे नही आयेगी।

उसे जितना भी घटा लो या बढ़ा लो तस्लीम ।
वह ऐसी गज़ल है जो बहर मे नही आयेगी ।

तस्लीम

©Tasleem wais
  बत्तमीज, सिद्धार्थ ज़ख़्मी हर्फ़ (Pramod) sandhya maurya (official) saniya आकाश तंवर