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कुर्सी (दोहे) कुर्सी को छोड़ें नहीं, ये उनकी है शा

कुर्सी (दोहे)

कुर्सी को छोड़ें नहीं, ये उनकी है शान।
उसको पाने के लिए, लेते नेता जान।।

कुर्सी मुझको ही मिले, सबका ये अरमान।
कहती दुनिया कुछ रहे, अपना यही जहान।।

कुर्सी को छोड़ूँ नहीं, इस पर है अब ध्यान।
सत्ता की इस भूख ने, बढ़ा दिया सम्मान।।

कुर्सी-कुर्सी कर रहे, नेता देख महान।
अपनी मैं की सोच कर, जाते पलट बयान।।

भ्रष्टाचारी कह रहे, अपना है ये काम।
जेबें मैं अपनी भरूँ, कुर्सी अपना धाम।।

कुर्सी से चिपके रहें, सभी कहें विद्वान।
इनकी है जो लालसा, जाने सकल जहान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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