World earth day - Poetry - आपके चैनल के लिए - हे मानव अब और नहीं क्या मेरा कोई सिरमौर नहीं पर्वत काटे नदिया बाटी समतल कर दी घाटी -घाटी वृक्षों में अब पतझर आया धूमिल हो गई सारी माटी प्रदुषण ने अब जहर उगला, जिसका कोई ओर छोर नहीं हे मानव अब और नहीं। मैं जीवन हूँ प्राणदायनी पंचतत्व की मे हूँ स्वामिनी क्यों भूले के सब तेरा है हे कलयुगी रावण अभिमानी निर्मल, स्वच्छ, शाकाहारी रहो, तुम नहीं जानवर ढोर नहीं हे मानव अब और नहीं। प्लास्टिक, पाॅलिथिन त्यागों हे विश्व मानव तुम जागो शपथ ग्रहण करो आज ही पृथ्वी को अभी बचालो मैं निर्दयी हुई तो सुनलो, फिर तो किसी का ठौर नहीं, हे मानव अब और नहीं। -सरस कुमार #EARTHGIF #EARTHDAY #Worldearthday