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बाहर की दुनिया से नही डरता मैं अंदर झांकता हूं

बाहर की दुनिया 
से नही डरता मैं 
अंदर झांकता हूं 
तब घेर लेता है 
मुझे अंधेरा 
ऐसा क्यों ? 

जैसे पसरा हो 
सन्नाटा 
किसी श्मशान 
घाट के कोने में | बाहर की दुनिया 
से नही डरता मैं 
अंदर झांकता हूं 
तब घेर लेता है 
मुझे अंधेरा ऐसा क्यों ! 

जैसे पसरा हो सन्नाटा 
किसी श्मशान घाट के कोने में |
बाहर की दुनिया 
से नही डरता मैं 
अंदर झांकता हूं 
तब घेर लेता है 
मुझे अंधेरा 
ऐसा क्यों ? 

जैसे पसरा हो 
सन्नाटा 
किसी श्मशान 
घाट के कोने में | बाहर की दुनिया 
से नही डरता मैं 
अंदर झांकता हूं 
तब घेर लेता है 
मुझे अंधेरा ऐसा क्यों ! 

जैसे पसरा हो सन्नाटा 
किसी श्मशान घाट के कोने में |

बाहर की दुनिया से नही डरता मैं अंदर झांकता हूं तब घेर लेता है मुझे अंधेरा ऐसा क्यों ! जैसे पसरा हो सन्नाटा किसी श्मशान घाट के कोने में |