चुप रहता हूँ क्यूंकि अभी तुमसे खुला नहीं हूँ मैं शहद की तरह तेरे कानों में अभी घुला नहीं हूँ मैं, एक बार जो घुल गया मिठास ता उम्र याद रहेगी ख़ामोश हूँ ,कहकहे लगाना अभी भुला नहीं हूँ मैं, ये अदब तो हमें अपनी विरासत में हासिल हुई है अभी तो अपनी पहचान से कभी मिला नहीं हूँ मैं, करता रहता हूँ गुफ़्तगू क़लम रोशनाई से यूँ अक्सर गर्द राहें मंज़िल की है क्यूंकि अभी धुला नहीं हूं मैं, ये उन दिनों की बात है जब हम उल्फ़त में जीते थे ख़त के वो पन्ने बिखरें है उन्हें अभी सिला नहीं हूँ मैं, तुम्हें पाने की हसरत में तो नाक़ाम हम कई दफ़ा हो गए कोशिश ता उम्र रहेगी, क्यूंकि तुम्हें अभी भूला नहीं हूँ मैं, ना जश्न मना मेरी गुमसूदगी का ऐ जाने वफ़ा शोख़ गज़ल बस थोड़ी आँख लग गयी थी,ख़ाक में अभी मिला नहीं हूँ मैं ©किसलय कृष्णवंशी"निश्छल"