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अपने परिवार और गाँव से दूर शहर मैं व्यथित मज़दूर

अपने परिवार और गाँव से दूर 
शहर मैं व्यथित मज़दूर 
भव्य इमारतों को बनाने वाला 
एक तम्बू मैं सोता है 
हर दिन की कमाई से ही 
तो भरण-पोषण होता है 

पर आज ये कैसा मंजर है 
पुरुषार्थ मैं कोई कमी नहीं है 
ना छींण हुआ कोई बल है 
बस कुदरत से लाचार सा होकर 
पल -पल  मरता हर पल है 

कुछ चुनावी माहौल मैं अपनापन जताते हैं 
पर विपदा मैं कहीं छुप से जाते हैं 
किसी की विवसता का आकलन क्या करें कोई 
सब अपनी स्वार्थ की नीति चलाते हैं 
(सचिन चमोला ) #कठपुतली
अपने परिवार और गाँव से दूर 
शहर मैं व्यथित मज़दूर 
भव्य इमारतों को बनाने वाला 
एक तम्बू मैं सोता है 
हर दिन की कमाई से ही 
तो भरण-पोषण होता है 

पर आज ये कैसा मंजर है 
पुरुषार्थ मैं कोई कमी नहीं है 
ना छींण हुआ कोई बल है 
बस कुदरत से लाचार सा होकर 
पल -पल  मरता हर पल है 

कुछ चुनावी माहौल मैं अपनापन जताते हैं 
पर विपदा मैं कहीं छुप से जाते हैं 
किसी की विवसता का आकलन क्या करें कोई 
सब अपनी स्वार्थ की नीति चलाते हैं 
(सचिन चमोला ) #कठपुतली