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aditi the writer
White कठपुतली सी जिंदगी, डोर किसी और के हाथ। चलना है उसकी मर्ज़ी, खो जाती अपनी बात। कभी हंसाए, कभी रुलाए, जो चाहे वो कराए, हम बस खेलते हैं किरदार, पर खुद को नहीं पा पाए। रंग-बिरंगी ये दुनिया, सपनों का बाजार, पर पीछे छिपी हैं डोरें, जो करती हैं वार-पार। हर कदम पे नाचते हैं, पर क्यूँ नाचते हैं हम, क्या यही है जिंदगी का सच, या फिर कोई भ्रम? कभी तोड़ें ये डोर, उड़ें आजाद गगन में, खुद के फैसले खुद लें, रहें अपने ही तन-मन में। कठपुतली नहीं हम, इंसान हैं अपनी पहचान से, चलें उस राह पर, जो शुरू हो अपने अरमान से। ©aditi the writer #कठपुतली Niaz (Harf) आगाज़ vineetapanchal Raj Sabri Kundan Dubey
#कठपुतली Niaz (Harf) आगाज़ vineetapanchal Raj Sabri Kundan Dubey
read moreaditi the writer
White कठपुतली सी जिंदगी, डोर किसी और के हाथ। चलना है उसकी मर्ज़ी, खो जाती अपनी बात। कभी हंसाए, कभी रुलाए, जो चाहे वो कराए, हम बस खेलते हैं किरदार, पर खुद को नहीं पा पाए। रंग-बिरंगी ये दुनिया, सपनों का बाजार, पर पीछे छिपी हैं डोरें, जो करती हैं वार-पार। हर कदम पे नाचते हैं, पर क्यूँ नाचते हैं हम, क्या यही है जिंदगी का सच, या फिर कोई भ्रम? कभी तोड़ें ये डोर, उड़ें आजाद गगन में, खुद के फैसले खुद लें, रहें अपने ही तन-मन में। कठपुतली नहीं हम, इंसान हैं अपनी पहचान से, चलें उस राह पर, जो शुरू हो अपने अरमान से। ©aditi the writer #कठपुतली Niaz (Harf) आगाज़ vineetapanchal Raj Sabri Kundan Dubey
#कठपुतली Niaz (Harf) आगाज़ vineetapanchal Raj Sabri Kundan Dubey
read moreSunil Kumar Maurya Bekhud
कठपुतली नचा रहा कर कोई इशारा नाच रही कठपुतली विवश हुई कुछ कर नहीं सकती उसपर हावी ऊँगली सभी चाहते दुनिया उनके आगे हो नतमस्तक सारा रस पान करें फिर लोग चबाएँ गुठली कोई भी शासन में आए चले उन्हीं का सिक्का ऐसा जाल बना दें जग में जोड़ जोड़ कर सुतली बेखुद कठपुतली कहती है बहुतेरे मुझ जैसे असल खिलाडी कोई और है वो पुतला है नकली ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #कठपुतली
Savita Suman
#कठपुतली खुद को हीं बना कठपुतली नचाती रही बंद कर पिंजरे में खुद को हीं सताती रही क्या कहेगी दुनियाँ जब निकलूंगी मन के कारा से यह बात हर पल दिल को सताती रही था वहाँ विस्तृत व्योम कारा के बाहर पर पंख अपने समेट खुद हीं, जलाती रही विद्रोह करता रहा मन इस गहरे अंधियारे का पर समझ इस निशा को अपना मुकद्दर खुद को इस तमस में लिपटाती रही चलता रहा है बर्षों से ये द्वंद्व अन्तर्मन में पर हर बार मना कर खुद को हीं समझाती रही खुद को हीं बना कठपुतली नचाती रही क्यों डोर औरों के हाथों में थमाती रही ©Savita Suman #कठपुतली
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