"किताब" सुबह जगने के बाद, रात सोने के पहले तक कार्य स्थल हो या चलते हुए रास्तों में कुछ करते या सोंचते हुए, मन की आँखो से झांकते रहते पढ़ लेते,फिर बोलते या लिखते, और बताते, कभी खुद को कभी और से तन्हाइयों में दोस्त, ग़मो में सारथी कई अनुभवों को समेटे यादों का एक स्टोर चित्र और शब्दों का भंडार संगीत और ध्वनियों का शोर सीख और कई नादानियां न जाने हैं कितनी कहानियां बुनती रहती स्वत: कुछ बन जाती और छप जाती जीवन के पन्नो में सवाल इसी में जवाब इसी में खोजते रहते, पढ़ते रहते हर वक्त हर जगह कभी एकांत कभी भीड़ में वो जो है खुद के अंदर मन की "किताब" ©ALOK SHARMA "किताब" सुबह जगने के बाद, रात सोने के पहले तक कार्य स्थल हो या चलते हुए रास्तों में कुछ करते या सोंचते हुए,