मेरे पास हरा भरा चमन है और मेरी कठौती मे गंगाजल है फिर मैं क्यों पाप पुण्य को अपनी तराज़ू मे तोलता रहूँ जंगलके नींरव वन मे कुछघर उजलो क़े भी है फिर मैं नाहक क्यों नानक कबीर क़े घर खंगालता फिरू ©Parasram Arora हरा भरा चमन.....