ख़्वाहिश ओ बदरा प्यारे क्यूँ जुल्म इतना ढा रहे हो लगी आग क्यूँ ना बुझा रहे हो प्रेम अग्नि में जले हैं तन-मन मेरा क्यूँ विरहन को तरसा रहे हो छुपा लो आगोश में अपने ये चाँद जो तडफ़ा रहा हैं कर दो शीतल इस काया को प्रेम बून्द को क्यूँ तरसा रहे हो देख तड़फ में चैन मेरा लूट गया काले काले बादल को ला कर अमृत थोड़ा पिला दो ना बिन पिया क्यों तुम क्यूँ तरसा रहे हो ओ बदरा प्यारे..... #रीना