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उम्र भर जिनके लिए मरते खपते रहे ,आज वही बच्चे अनजा

उम्र भर जिनके लिए मरते खपते रहे ,आज वही बच्चे अनजान हो गए,
रद्दी क़ागज़ सी हो गई माँ बाप की क़ीमत,बच्चे ओहदेदारों में पहचान हो गए,

तिनका तिनका जोड़ा था ,काया को जीभर तोड़ा था,एक आशियाने के लिए,
वक़्त का सितम देखो,उस नीड़ की पहचान थे जो वही चन्द पल के मेहमान हो गए,

जिस क़ागज़ पर पढा था ज़िन्दगी का ककहरा,हर ख़्वाब जिनकी आँखों मे था ठहरा,
गूंजा करती थी अमृत वाणी जिनके लफ्जों में, वही उस मन्दिर में बेजुबान हो गए,

फेंक दिया एक रोज ज़िन्दगी से निकालकर, रखा था जिन्होंने कभी दिल मे सँभालकर,
फेंक दिया माँ बाप को रद्दी समझकर,चन्द सिक्के ही उनके अब भगवान हो गए।।
-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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