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Kamlesh Kandpal

https://youtube.com/@KK-Opinion?si=N_1vAdm45WaJVBX-

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Kamlesh Kandpal

हरी दूब
भी क्या खूब
जड़ को बना कदम
फ़ैल जाती झमाझम

©Kamlesh Kandpal
  #Dub
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Kamlesh Kandpal

आने वाली पीढ़ी कमलेश,
अब देखेगी जानवर तस्वीरों में।
इतना खुदगर्ज बन गया इंसान 
कि दुश्मन ढूढ़ता है फकीरों में।

हैवानियत बड़ गईं इस कदर इंसानों में 
कि कत्ल का जिक्र ही रहता हैं  नजीरों में।

हजारों जातें मिट गईं प्राणियों की,
तलवारे जाती नहीं अब शमशीरों में।।

©Kamlesh Kandpal
  #haiwaniyat
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Kamlesh Kandpal

White लाखों जीवों का अस्तित्व मिटा 
भोगी इंसान अंजान हैं 
जलवायु परिवर्तन हो जाने से ,
खतरे में डूब रहा जहान हैं.

बेतहाशा गर्मी, जल प्रलय 
को जो ना जाने, वह नादान हैं।

हिमनद पिघल रहे, समुद्र जल बड़ा 
क्या दिख नहीं रहा, श्मशान हैं

©Kamlesh Kandpal
  #sad_quotes
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Kamlesh Kandpal

संध्या की मधुर बेला 
निशब्द व्योम अकेला 
अस्ताचलगामी हो गया रवि 
उसकी लालिमा से बनी सुन्दर छवि

©Kamlesh Kandpal
  #Suryast
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Kamlesh Kandpal

White कमलेश पहाड़ो पर कूड़ा फैलाते रहे सैलानी 
वहाँ रहने वाले भी उन्हें देख रहे अज्ञानी।
कुदरत के आंसुओ को देख न पाया कोई,
जाने कहाँ सूख गया, इंसान के शर्म का पानी

©Kamlesh Kandpal
  #Sad_shayri
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Kamlesh Kandpal

ताउम्र किताब पड़ी तूने सारे जहाँ की, पर इंसान न पड़ पाया 
जिसने  सैर की जहाँ की, वह आवारा मसीहा कहलाया

©Kamlesh Kandpal
  #Masih
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Kamlesh Kandpal

White जब सब था, थे मेरे साथ सब  
ख़ुदा भी था, था मेरा भी मजहब।

थोड़ा तंगी जो आने लगी जिंदगी में
छूठे साथी सभी, छूट गया रब।

©Kamlesh Kandpal
  #sad_shayari
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Kamlesh Kandpal

होशो हवास मे अल्फाज़ न मिले,
बेफिक्री मे दिल चमन बन गया मेरा।

©Kamlesh Kandpal
  #Hosh
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Kamlesh Kandpal

White खिली कली, बना फूल 
यहीं तो थी उसकी भूल 

कभी भंवरा,कभी तितली,
बैठे कई कीट उल जुल जुलूल 

किसी को बनाकर फूलों की रानी 
मन को भटकाया निर्मूल।

क्या फूल, क्या कांटे, सब कृति 
एक समान, यह कुदरत का उसूल।

©Kamlesh Kandpal
  #flowers
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Kamlesh Kandpal

फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

लड़खडाएंगी सांसे, ये गुमान न था
जाने कैसा ये कुदरत का कहर है।
फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

पिजड़े मे कैद परिंदे के मानिंद हुई जिंदगी
न दिखने वाले ज़रासीमों से भी इतना डर है
फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

उखड़ती सासों से भी सौदा कर रहें है लोग
इंसानी जीवन का ये कैसा मंजर है
फ़िजाओ मे घुला जाने ये कैसा जहर है
न छूटा गाँव इससे ,न छूटा शहर है

©Kamlesh Kandpal
  #jhr
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