कल हम थे खड़े उसी हाशिए पर जहां आज तुम खड़े मुस्करा रहे हो ये जो समय है बड़ा बेवफा है तुम आज इसी समय पर इतरा रहे हो पग डगमगाए थे मेरे भी पर चित्त स्वच्छ रखा था मैंने एक दिन ये समय सबका आया होगा खुद से बस यही कहा था मैंने अब तुम जो ऊर्जा से भरे हो खुद को पर्वत मान तन खड़े हो तुमको भी शीश झुकाना पड़ेगा विधी है इसे दोहराना पड़ेगा कालचक्र ही एक सत्य है सुदिशित परिवर्तन का व्रत है बदलना पड़ेगा,समझना-समझाना पड़ेगा जो न समझे तो पछताना पड़ेगा बस याद रहे,आज तुम काल के उसी पथ पर अड़े हो हम कल वही थे,जहा आज तुम खड़े हो ! कालचक्र !