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लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन । आता अब पल भर न

लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन ।
आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।।

देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन ।
मन ये प्यासा रह गया , बीत गई फिर रैन ।।

रूप मोहिनी देखकर , ठहर गये दो नैन ।
लब बेचारे  मौन थे , कह न सके दो बैन ।।

जिनकी सुन तारीफ में , निकल न पाये बैन ।
कजरारे वह नैन अब , लूट रहें हैं चैन ।।

इतना तो अब ध्यान रख , भोर नही ये रैन ।
झूठ बोलते आप हैं , बोल रहे दो नैन ।।

अमृत कलश पिला दिए , तेरे ये दो नैन ।
झूम-रहा हूँ देख लो , पीकर अब दिन रैन ।।

लाकर होठों पर हँसी , पीर छुपाये कौन ।
दो नैना यह देखकर , रह न सकेंगे मौन ।।

दो नैना जो चार हो, खिले अधर मुस्कान
धीरे-धीरे हो गया , देख हृदय का दान ।।

०४/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन ।

आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।।


देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन ।

मन ये प्यासा रह गया , बीत गई फिर रैन ।।
लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन ।
आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।।

देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन ।
मन ये प्यासा रह गया , बीत गई फिर रैन ।।

रूप मोहिनी देखकर , ठहर गये दो नैन ।
लब बेचारे  मौन थे , कह न सके दो बैन ।।

जिनकी सुन तारीफ में , निकल न पाये बैन ।
कजरारे वह नैन अब , लूट रहें हैं चैन ।।

इतना तो अब ध्यान रख , भोर नही ये रैन ।
झूठ बोलते आप हैं , बोल रहे दो नैन ।।

अमृत कलश पिला दिए , तेरे ये दो नैन ।
झूम-रहा हूँ देख लो , पीकर अब दिन रैन ।।

लाकर होठों पर हँसी , पीर छुपाये कौन ।
दो नैना यह देखकर , रह न सकेंगे मौन ।।

दो नैना जो चार हो, खिले अधर मुस्कान
धीरे-धीरे हो गया , देख हृदय का दान ।।

०४/०४/२०२४     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन ।

आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।।


देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन ।

मन ये प्यासा रह गया , बीत गई फिर रैन ।।

लूट लिए हमको सजन., तेरे ये दो नैन । आता अब पल भर नहीं , सुनो जिया को चैन ।। देखो जब भी हम मिले , किए बात दो नैन । मन ये प्यासा रह गया , बीत गई फिर रैन ।। #कविता