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"ढूंढा है जिसे हमने जमीं के जर्रे जर्रे से वो आज क

"ढूंढा है जिसे हमने जमीं के जर्रे जर्रे से
वो आज क्यों गुम सुम सा लगता है
जैसे चांद बादलों के बीच मांद मांद सा
लगता है, उसकी चमक यूं हीं फीकी सी
 नहीं हो सकती, जरूर उसे कोई गम
का साया मिला है, ढूंढा है जिसे हमने
जमीं के जर्रे जर्रे से क्यों आज गुम सुम
सा लगता है, उसकी खुशी से हम खुश
थे,उसके गम में भी हम शामिल थे,फिर 
क्यूं उसका हौसला आज टूट रहा है जैसे
वक्त से लम्हा छूट रहा है, क्यों हमसे 
भी उसने किनारा किया,साथ छोड़कर
 बेसहारा किया,ये मायूसी तो उसका
अंदाज नहीं था,जो उसका कल था ,क्या
आज नही था, हक से उसने हर बात कहा
फिर आज क्यों हमको उसने मायूस किया 
ढूंढा था हमने जिसे जमीं के जर्रे जर्रे से
आज क्यों गुम सुम सा बैठा है"

©पथिक
  #मायूस लम्हा मेरे प्यार का

#मायूस लम्हा मेरे प्यार का #लव

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