#OpenPoetry गरीब बीमार वो तंग बेहाल परेशान जिंदगी से निरास ये छोटी से आशा लिए पहुँचता है अस्पताल होता है थोड़ा और निरास देख वहाँ पर हाहाकर, चकाचौंध और भागदौड़ चुपचाप निरास बैठा अस्तब्ध देख रहा है सब अनजान लाइन पर लाइन नंबर पर नम्बर आस लगाए लगे है लोग बड़ी मस्साकत करनी पड़ी बस देख ले साहेब एक बार हो गयी आज तो सुबह से शाम अगले दिन जब बस आने वाला था नम्बर उसका तब तक आ जाते है बी बी आई पी साब देख रहा था कैसे जो दुतकार डाट रहे थे उसको कैसे दुम हिला रहे है वो उस साहब के आस पास ।