गुमशुदा मुसाफिर हूँ अपने जिन्दगी के सफ़र का, मंजिल की तलाश में ना घाट का रहा ना घर का। चारो तरफ एक अजीब-सी सन्नाटा छाई रहती है, जानें क्यों राह भी भूल चुका हूँ अपने ही शहर का। खौफ़नाक मंज़र है पर चला जा रहा हूँ बेताहाशा, उजड़ चुका है अपना आशियाना गुज़र बसर का। बहुत हो चुका अब बंद कर मौत का तांडव ऐ खुदा, कोई तो नीलकंठ होगा जो अंत करे इस जहर का। दिल कहता चलता चल मिलेगी एक दिन मंजिल, रख विश्वास अंत होगा एक दिन इस कहर का। The Writer's Magnet आप सभी का इस प्रतियोगिता में स्वागत करता है। आपकी रचना 4 से 10 पंक्तियों तक ही होनी चाहिए। #writersmagnet #wmchallenge #wmmusafir #yqdidi #yqhindi ✍️ आपकी रचना व्यक्तिगत एवं मौलिक होनी चाहिए। ✍️ समय सीमा - रात्रि 9:00 तक ✍️ कृपया हमारे hashtags बरकरार रखें। ✍️ कृपया collab करने के पश्चात comment में Done करें।