स्नेह दीप अब जलने दो मन की पीड़ा करती है क्रीड़ा बेबस "नीर" को अब प्रीत में ढलने दो स्नेह दीप अब जलने दो नूतन आशाओ की उज्ज्वल कान्ति दीर्घ नयनों में जा बसने दो विपिन संचारी पिक की कूक स्नेह गीत वाद में अब ढलने दो स्नेह दीप अब जलने दो क्यों ? छेड़ते मिलन के पंचम स्वर कम्पित हो उठता चितवन नयन अधर प्रेम वारिद आज मदन बन उमड़ घुमड़ अब झरने दो स्नेह दीप अब जलने दो .......नीरज वर्मा "नीर" ©Neeraj Neer #WinterSunset