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उष्णता भरती लबों पर ताजगी अभिप्राय की, कड़क स

उष्णता  भरती लबों पर  ताजगी  अभिप्राय की,  
कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की,  

नींद  से  बोझिल  नयन  थे  स्वप्न में   खोये  हुए,  
तभी  सुमधुर  मंद  स्वर में  किसी ने आवाज़ दी,  

कर  तरंगित  शांत जल में  भर गई एहसास वो,  
मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की,  

छूटती   कैसे  लगी  जो  लत  अठारह  साल से,  
बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की,  

कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है,  
देखती  आंखें  रहीं  पर  दिलजले  ने   हाय की,  

चुस्कियां    लेते    हुए    संवाद  कायम   हो गये,  
मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की,  
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
          प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #एक प्याली चाय की#
उष्णता  भरती लबों पर  ताजगी  अभिप्राय की,  
कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की,  

नींद  से  बोझिल  नयन  थे  स्वप्न में   खोये  हुए,  
तभी  सुमधुर  मंद  स्वर में  किसी ने आवाज़ दी,  

कर  तरंगित  शांत जल में  भर गई एहसास वो,  
मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की,  

छूटती   कैसे  लगी  जो  लत  अठारह  साल से,  
बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की,  

कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है,  
देखती  आंखें  रहीं  पर  दिलजले  ने   हाय की,  

चुस्कियां    लेते    हुए    संवाद  कायम   हो गये,  
मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की,  
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
          प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #एक प्याली चाय की#