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" आज मैंने बहुत दिनों के बाद तेरे शहर का रुख़ किया है ,
बताओ जरा कहा कब कैसे मिलना चाहोगी तुम ऐसे में ,
एक मुद्दत का इन्तजार खत्म होने को ऐसे में तेरे - मेरे बीच का ,
कई मिलो का दरम्यान ख्यालों में उलझे हैं फासले कब कैसे फनाह होंगे . "
--- रबिन्द्र राम