मैं से हम तक आने में खुद से खुद तक जाने में, देखो कितने साल लगे ये खुद को समझाने में। खोया कितना कुछ पाकर कोई जो गया नहीं जाकर, जो रहा अब चुभन बना थे बरस लगे दफनाने में। जो शामें थी तुम संग विदा हुई फिर रंज था तुम को आने में और कुछ तो खोया था पाकर जिसे जनम लगे थे पाने में। था यकीं मुझे इस बात पे भी तेरे बिखरे जज्बात पे भी मुड़कर न देखेगा मुझको पर जरा देर लगेगी जाने में। चल चलते हैं अब राह बदल और वादा वही न मिलने का आंखों का क्या है छलकेंगी उन्हें न वक्त लगे भर आने में। तकलीफ जरा तो होगी ही खुद को तन्हा बतलाने में। #माधवेन्द्र_फैजाबादी