संभल कर मिलें गले भी, लोग खंजर लिए बैठे हैं, पहचाने उस मासूमियत को,वो मुखौटा पहन चलें है! संभलकर रखना कदम,राह में फूल बिछा रखें हैं, अपनो ने उस पथ पर कांटे बिछा रखें है! क्यों दोष देना उनको,उनकी नादानी है वो, जिस जगह आज हम है,बस उनकी ही मेहरबानी है वो! यू तो लिख गयी हैं, जिन्दगी क्या गलत क्या सही है, बस जी रहे हैं, हम इस फिजा में, ये वो अनकही सी "कहानी" है !! #अनकही सी कहानी है वो!