#OpenPoetry में बेशक तुम्हारी आवाज़ बनुंगी पर शर्त है की तुम इस आवाज़ को दुसरो के सामने अलग ढंग मत देना रास्ते की भांति हुं में तो मेरी जगह और किरदार लोगोको उनकी मंजिल तक पहुंचाना है हां, आम नहीं हुं.. खास हुं में तुम आये थे चलने अपनी सफर के लीए मेरे पास में तो मेरी जगह पर पनप ही रही थी! अब मे साथ चलु तुम्हारी मंजिल मे और तुम समजो की में तुम्हारा साथ चाहती हुं.. तो सुनो.. थोड़े से नहीं पुरे गलत हो तुम! में तो उस काले पथ्थर को ही अपना साथी चुनती हुं तुम जैसे को ठोकर देके तुम्हारी औकात दिखाता है वो मेरे वजूद पे उंगली मत उठाना ऐ आस्तीन के सांप फितरत नहीं है मेरी छलनेकी किसीको वरना नक्शा भी बदल शकती हुं हां मे नारी हुं.. कंगन भी पहन सकती हुं और कलम चलाके इन्कलाब भी ला सकती हुं॥ - नीपा जोशी शीलु #OpenPoetry #mai besak tumhari Awaz banungi