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मैं तुझमे तू मुझमे निरंतर दिपते हैं आ बाँध दे फि

मैं  तुझमे
तू मुझमे
निरंतर दिपते हैं
आ
बाँध दे  फिर से
मिलन का ऐसा समा
ज्यों बाँध 
जाती हैं
आत्मा  अंतर से

©Parasram Arora मिलन.....
मैं  तुझमे
तू मुझमे
निरंतर दिपते हैं
आ
बाँध दे  फिर से
मिलन का ऐसा समा
ज्यों बाँध 
जाती हैं
आत्मा  अंतर से

©Parasram Arora मिलन.....

मिलन.....