गुनाह ======== भूल जा मुझे.... तुझे हक हैं .. हाँ किया हैं.... गुनाह मैने... तुम्हें अपनी जिंदगी... के फैसले लेने का... कैसे तुम्हें.... गुनाहगार कहूँ.. तुम्हें अपने दिल का.... रब जो बनाया हैं... हर गुनाह की.... गुनाहगार मैं हूँ.. मेरा रब कभी..... मुझे सज़ा.. देने की सोच.... भी नहीं सकता... वो तो जब भी देगा... मुझे खुशियों की सौगात में.. कुछ बेहतर ही देगा चाहे वो खुद... से जुदा ही होने की क्यों न हों... बस एक गम.... हमेशा सताता रहेगा.. भूलना ही था... तो दिल ही क्यों लगाया... चलों दिल भी .....नही लगाया तो फिर झूठा प्यार... अपनी नज़रों मे कैसे लाये.. ये अंदाज ही... हमें बता दो.. जिससे कि हम... खुद अपनी ही नज़रो में थोड़ा... बहुत उठ जाए.. गीता शर्मा प्रणय #reading #गुनाहगार #गुनाह