कहते हैं की समय आगे बढ़ता रहता है गिनतियों में साल बढ़ते और बदलते जाते हैं बहुत कुछ बदलता जाता है समय की दौड़ में और बहुत कुछ हम पीछे छोड़ जाते हैं लेकिन तारीख तारीख फिर फिर कर वापस लौट कर आती है कितना कुछ बदल सा जाता है सिर्फ रुपहले परदे पर तारीख के बदलते ही और गिनतियों में ही सही वापस लौटते ही इस तारीख में हम उन तमाम पीछे छूट चुकी चीजों को फिर से यादों में जीने लगते हैं और रोक लेते हैं वक्त को कुछ पल के लिए खुद में उन गुजरे हुए मंजरों के साथ और फिर एक अनजाना सा चिरपरिचित भी संवाद उठता है हियतल में क्यू हुआ था ये सब .....? क्यूं छोड़ आया था सब ? क्यूं मैं बह चला धार में बिन पतवार के? हम्म्म समय की चाल में...... गिनतियों में लौटती तारीख में..... ©Shivam Verma back on the date 29/06