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shivamverma2677
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Shivam Verma

join me at insta 'v_.shivam' सुदूर संवेदना को दिल की वेदना से जोड़ कर कुछ शब्दशः लिखने का प्रयत्न करता हूं मै कोई हरफों का जादूगर नहीं बस एक शब्दों की गलियों का मुसाफिर हूं कुछ पल यहां रुका कुछ चुन लिया कुछ पल वहां गया कुछ लिख दिया

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Shivam Verma

चिर तूफानों से घिरा हुआ पर 
स्थिर मन को रखना पड़ता है 
प्रचंड वेग हैं लहरें 
उलझे संवादों की
फिर मुख पर कर मुस्कान 
सुलझी  सी बातें करना पड़ता है 
कर रही होती है वेदना व्याकुल
पर चेतना से श्रंगार करना पड़ता है 
अंतर्मन व्यथित सब अस्त व्यस्त हो
फिर आवरण का अंतर्द्वन भी सहना पड़ता है 
एक उम्र का पड़ाव 
और अस्थिरता का दबाव
शायद इसी तरह हर रोज 
खुदकुशी कर खुद जीना पड़ता है

©Shivam Verma #Jindagi
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Shivam Verma

उन्मादों के संवाद बहे अश्कों से
अधरों ने चुप रहना सीख लिया 
शब्दों के आलिंगन को 
दृग ने फिर एकांत का वास दिया
हिय के अंदर के तीक्ष्ण प्रहार
ज्वालामुखी समान स्फुटित हुए
अंतर्मन के जज़्बात लड़े
मल्ययुध से हुए आगाज 

फिर अंधकार डूबा प्रकाश
फिर सांझ ढली और देर रात 
आहट बिना फिर तूफानों को 
कर में अपने ही सोंख लिया 
फिर खुद में ही 
खुद से बातों का दौर हुआ
कुछ बिषरी दबी हुई और कुंठित
 यादों पर सहसा  पड़ा प्रकाश
स्पष्ट हुए दुर्दिन के काल
सब कर्म करण और आचार
कब कैसा अत्याचार हुआ
किन किन को छी§न लिया 
क्या क्या नहीं दिखलाया 
थे अपने सब जिनसे बैर किया 
लोभ विवश सब खुद से ही नाश किया
फिर काल दृष्टि पलटा समय
और कर्मा ने आगाज किया
जैसा जैसा कर रक्खा था 
वैसा ही खुद के साथ हुआ 
एक एक कर सब छूटे
फिर दाने को भी मोहताज हुआ...।

©Shivam Verma #जज़्बात
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Shivam Verma

उथल पुथल के बीच समंदर  
फिर भी मन के अंदर का खालीपन 
उन्मादों का बहता प्रचंड प्रपात 
फिर भी अधरों से सन्नाटा 
संवादों के ज्वालामुख  बस खुद से
फिर भी कुछ कहने की इच्छा न हो
मकड़ जाल में बंधा परिंदा 
फिर भी उड़ पाना अब मुमकिन न हो 
 शांत चित्त,स्थिर प्रवाह, कोमल मुखस्फुट 
फिर भी कर्ममार्ग फिर से दूर तलक

©Shivam Verma
  #Likho 
संवाद जो अधर से न निकले

#Likho संवाद जो अधर से न निकले #ज़िन्दगी

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Shivam Verma

सफर लम्बा अब सफर करना है,
इल्तज़ा है कि कुछ भी न कहना है 
खामोश होकर सवार तो हो लिया हूं 
कोई मिल गया 
तो यकीनन गुफ्तगू भी होगी 
रूबरू हम खुद से खुद को करेंगे 
धूप से व्याकुल हृदय को,
शायद राह के अंधेरे छांव देंगे 
रहगुजर कुछ रास्तों से यूं होंगे 
फलसफा 
कुछ दूर पर हर मोड़ का महफूज होगा
 मंजिल तलक और बाद भी ।।। 
हम्म्म....
 फलसफा
 कुछ दूर पर हर मोड़ का महफूज होगा
 मंजिल तलक और बाद भी।।।

©Shivam Verma
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Shivam Verma

शब्दों को सुन सब सोच लिया..
मैने मन के भीतर कब देखा था...?
जो देखा सब सच समझा..
सच में सच को कब देखा था...?
मन अपने ही वो कैसा है मान लिया.. 
वो कैसा है ये कब देखा था...?
परत देख धूल निर्णय कर बैठा..
नीचे साफ आइना होगा कब देखा...? 
जब खुद में सोच लिया सब मैला है ..
चमक स्वर्ण की कब देखा था...?

©Shivam Verma
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Shivam Verma

ज़िद न करना भी मेरी जिद है 
या मजबूरी 
जिद न करता हूं  अब मैं
खुद से 
खुद के अपनों से 
न ही कुछ सपनों से 
कुछ लोगों से
डर सा लगता है 
खुद को खोने से 
खुद की खोने से 
अक्सर  ही तो मेरी जिद से 
मुझको मुंह की खानी पड़ती है 
जिद करता हूं जब भी मैं
फिर कोई प्यारी चीज मुझे खोनी पड़ती है 
अब अक्सर ही दो आंसू ज्यादा  रो लेता हुं
खुद को सब कुछ समझाने को 
खुद में ही बातें रख लेता हुं 
अपने भावों को रख लेता हूं
उन्मादों को रख लेता हुं 
खुद से निकली सिसकारी को
खुद से ही चुप कर लेता हु 
लेकिन कोशिश करता हूं 
अब न जिद करने को
अक्सर ही समझा लेता हूं खुद को 
जिद करने की जिद को कम कर लेता हूं
अपनी खुशियों को पाने को 
खुद से समझौते भी कर लेता हूं 
अब मैं जिद नही करता हुं 
डर लगता है खुद को खोने से
खुद की खोने से.....

©Shivam Verma zidd
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Shivam Verma

फ़रियाद करूं भी तो क्या करूं 
जिससे करता हूं रूठ  सा जाता है 
कुछ समझे बिना मेरी 
मुझपे न समझने का आरोप लगाता है
हम्म्म वो कहता नहीं है 
लफ्ज़ से मेरे कसूर को
जुर्म है ये  वो अनकहे ही दर्ज कराता है 
फिर मेरी बात ही सुनेगा खामोशी से 
और 
अपनी खामोशी से मेरी गुहार को ही
 मुल्जिम बना देता है 
वो जानता है वो ही मेरी हिम्मत है 
जिंदगी के तकल्लुफों में
और फिर बड़ी हिम्मत से वो 
मेरी कमजोरी भी बन जाता है
हम्म्म नहीं रह सकता हूं 
मैं उसके साथ के बिना  वो भी जा नता है
प्यार शायद वो मुझसे ज्यादा ही करता है 
बस वो न जाने कैसे 
अपनी गहराइयों को छिपा पाता है
और मुझे अहसास कराता है अपनी बेख्याली का 
पर फिर भी न जाने क्यों 
मैं तमाम इल्जामों से ताल्लुफ न रखकर
बेसब्री से उसके कुछ कहने की राह तकता हूं
हम्म्म मैं उसका ही हूं बस 
वो इस बात से इत्तेफ़ाक रखता है

©Shivam Verma शिकायते

शिकायते #विचार

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Shivam Verma

हंसता हुआ चेहरा उदास हो
लफ्ज़ जो ज्यादा बोलते थे चुपचाप हो
समय में कितनी ही खटास हो 
क्या फर्क पड़ता है
ख्वाबों और जिंदगी में
पथिक को पथ पर 
चलना ही पड़ता है
हार फिर फिर लौट कर आती हैं
और गहराई कितनी है बतला कर  जाती हैं 
संघर्ष की पगडंडी थोड़ी मुश्किल तो होती है 
पर जीत की मंजिल  भी तो सिर्फ एक होती है 
पर  जीत की मंजिल भी तो सिर्फ एक होती है 
दूर  तलक चलना है तुझको 
मंजिल की राह पर 
थक मत मुसाफिर
बढ़ तू आगे टूटने से बचकर 
जीत की मंजिल का रस्ता भी संघर्ष और उम्मीद है  
थक गया अगर तो हौंसले भी टूट जायेंगे 
पथ  जो लम्बा  तय किया है 
फिर कहीं पीछे छूट जायेंगे 
तू अगर टूटा एक हार से तो 
जीत की उम्मीद भी तुझसे मुंह चुराएगी 
जो है तेरा संघर्ष फिर वो व्यर्थ जायेगा 
धर धीर फिर पीर से पीछा छुड़ा
तू पथिक है जीत की मंजिल का 
खुद का हाथ थाम और फिर जुनून से आंखे लडा

©Shivam Verma #findyourself
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Shivam Verma

हम्म्म....
मैं भी थक जाता हूं 
अक्सर ही 
अपनी उम्मीदों से
कुछ टूटे सपनों से 
कुछ खुद में बिखरी
 उन सपनों की यादों से 
अक्सर ही कंधे झुक जाते हैं 
पर्वत सी लगने वाली 
कम उम्र की जिम्मेवारी से
थक कर आंखों से आंसू आते 
फिर भी चुप रहता हूं
सब सहता हूं 
खुश रहता हूं 
कोशिश करता रहता हुं
हर अपने को खुश रखने को
न थका हुआ हूं कहता हूं
पर थक जाता हुं 
अक्सर ही 
कुछ झुटी कसमों से 
कुछ वादों से 
कुछ एहसासों से 
कुछ अहसानों से 
धुंधलाते अरमानों से 
कुछ दबे हुए जज्बातों से
कुछ न कह पाने की झुंझलाहट से 
फिक्र, आस और आहट से 
कुछ कलकल करती कड़वाहट से 
कुछ अपनी शुद बुद खोए खुद से 
थक जाता हूं 
रूक जाता हूं 
कुछ पल को
फिर कुछ आगे बढ़ने को 
और फिर फिर कहता हूं अच्छा हूं 
हम्म्म ......
सोने की लिप्सा मुझमें भी रहती है 
आंखे अक्सर ही बैठे बैठे
 झपकी सी लेने लगती हैं 
फिर अपनों की बातें सुनने को 
पलकों  को खोले रखता हूं 
हम्म्म......
मैं भी थक जाता हूं 
अक्सर ही 
अपनी उम्मीदों  से

©Shivam Verma #AWritersStory
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Shivam Verma

कुछ दिनों से अब शायद...
मैं शायद ख़ामोश सा रहने लगा हूं

कुछ लफ्ज़ आते होंगे शायद...
मैं शायद खुद में छिपा रहा हूं

कुछ दिनों से शायद...
मैं शायद बड़ा हो रहा हूं

कुछ खास तो था  मुझमें शायद...
मैं शायद खुद से कह रहा हूं 
 
कुछ सोच रहा होता हूं शायद 
मैं शायद फिक्र करने लगा हूं

कुछ और ही आ जाता है शायद...
मैं शायद या  मेरे दरमियां भी

कुछ अपनी नाकामी को शायद...
मैं शायद जिक्र करने अब लगा हूं 

कुछ गलतियां जो रहगुजरी हों शायद...
मैं शायद अब समझने लगा हूं 

कुछ हार से मुखातिब जो हुआ शायद ...
मैं शायद खुद को गढ़ने लगा हूं 

कुछ अंजिए से ख्वाब  मुझमें शायद ...
मैं शायद रात के सपनों से जग रहा हूं 

कुछ मंजिलें फिर नई ढूंढ़ कर शायद...
मैं शायद अब रास्ते छांट रहा हूं

कुछ दिनों से आंख में कम शायद...
मैं शायद नींद के पुर्जों को सिल रहा हूं

कुछ दिनों से अब शायद...
मैं शायद खुद में खोकर पा रहा हूं
कुछ दिनों से अब शायद...
मैं शायद खामोंस सा रहने लगा हूं
                      शिवम्

©Shivam Verma #Mic
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