प्यार का सिला राज-ए-राह बताता है, दिल ही दोस्त बन दुश्मनी निभाता है। ज़ख़्म कोई दीजिए जानेवाले जुदाई में, ज़िन्दगी तो मज़े मज़े मै छटपटाता है। होगा करम के दायरे सारे मीट जाएंगी, इतना बता क्यूँ वो हर पल सताता है। लड़खड़ाने लगे हैं क़दम आग लगा कर, अब तो अपना पता दूर से मुस्कुराता है। इश्क़ ख़ता है और जान सा ख़ास भी है, जितनी दफ़ा सोचू नजऱ बस वो आता है। तुम्हारा तलबगार हूं फिरुं छत पे अकेले, जब भी जलवा दिखा चाँद भी लजाता है। रूठने का अंदाज़ दर्द देती है जी भरके, कुछ बहाना बना के लगे तू ही बुलाता है। ©Rashmi Ranjan Rath #nojotonazm #राज-ए-राह #तलबगार_हूं