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बचपना याद आता है,तो आँखें भींग जाती हैं थी जब छोटी

बचपना याद आता है,तो आँखें भींग जाती हैं
थी जब छोटी-छोटी बातों पर, रूठ कर खीज जाती ये
बचपना याद आता है,वो दिन भी याद आते है
जब भाईयों से झगडे़ होते थे,शरारतें जम के होती थी
मारपीट होती थी,माँ से शिकायत भी होती थी
पर कुछ क्षण बाद सब भुलकर, बातें फिर-से होती थी
शुरू फिर-से वही गपशप,शरारतें फिर-से होती थी
और अब तो साथ बैठे भी,जमाने कितने गुजरे है
वो बचपना,वो दिन अब तो सपने हो गए है
अब ना बातें होती हैं,ना वो शरारतें होती हैं
ना माँ से शिकायतें होती हैं,ना माँ की हिदायतें होती हैं
और नाही हमारे बिच अब माँ रहती है
बस देखकर वक्त का सफर यें,आँखें खीज जाती हैं
बचपना जब याद आता है,तो आँखें भींग जाती

©Màñjú
  #BachpanAurMaa #Bachpanyade