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ता उम्र गुजर जाती है खुद को साबित करने में ऐसी ज



ता उम्र गुजर जाती है
खुद को साबित करने में
ऐसी जिंदगी की जरूरत क्या है
 
अपने ही काफी है तबाही के लिए
फिर गैरों की जरूरत क्या है
 
हमसे ना पूछो गमे दिल का हाल
आंखें जब दरिया हो दर्द की जरूरत क्या है
 
आंसू तो अपने हैं जख्म पराए हैं
ऐसे जख्मों को मरहम की जरूरत क्या है
 
रिश्तो के धागों में जब गांठ पड़ी हो
ऐसे धागों को सुलझाने की जरूरत क्या है
 
साया भी जब खुद का दूर नजर आए
फिर किस्मत आजमाने की जरूरत क्या है
 
अंधेरे जब सुनाएं खुद अपनी दास्तान
उसे रोशनी में लाने की जरूरत क्या है

©अर्हंत
  क्यूँ...

क्यूँ... #Shayari

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