मनहरण घनाक्षरी:-
प्रेम के ही फूल खिले , आओ आप हम मिले ,
देख फिर तो होली में , प्रीत ही गुलाल है ।
भूल नहीं आप जाना, कहीं भी हो चले आना,
कौन जाने किसका ये , आखिरी ही साल है ।
पिछली बार होली का , मेरे ही हमजोली का ,
देख यह पास मेरे , आज भी रुमाल है ।
स्वप्नों में आयेगा वह , दूर न जायेगा वह , #कविता