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|| पारुल प्रवचन || सोच ये सोचकर सोच में पड़ जाती

 || पारुल प्रवचन || 
सोच ये सोचकर सोच में पड़ जाती है कि हम क्या सोचें क्या न सोचें और हम क्यूँ सोचें और क्यूँ न सोचें हमारे सोचने से किसी को क्या फर्क पड़ता है और शायद पड़ भी सकता है हमारी सोच सबको सोच में डाल सकती है। फिर लोग क्या सोचेंगे।कुछ तो लोग कहेगे। लोग क्या कहेगे यूँ ही कहेगे या सोचेगे| अगर लोग ऐसे ही सोचते रहे तो हर बार सोच में परिवर्तन लाना लाजमी हैं। तो क्या मैं दिन भर यूँ ही सोचता रहूँगा। मेरे पास और कोई काम धाम नहीं कि मैं अपने बारे में सोचूँ या लोगों की सोच के बारे में ही सोचता रहूँ। लोग हमारे बारे में सोचते ही क्यों हैं क्यों सोच सोच कर घुले जाते हैं हमारे लिए क्या किया है उन्होंने जो सोच सोच कर जले भुने जाते है।भाड़ में जाये लोग और लोगों की सोच सब कुछ सोचने का क्या हमने ही ठेका ले रखा है।पर लोगों का क्या है हम सोचें या न सोचें वो तो सोचेंगे ही। लोग अपने अपने हिसाब से सोचेंगे ही। हम उनकी वजह से क्यूँ सोचें और सोचना भी क्यों बंद करें।अरे दिमाग है तो सोचेंगे ही न।सोच ही तो हमें एक दूसरे से भिन्न करती हैं। सोच ही के कारण तो हमें जीवित होते रहने का आभास होता है।अरे बाबरे मन तू भी क्या कितनी देर से सिर्फ सोचे जा रहा है।कौन सा किला जीत लिया तूने इतना टाइम बर्बाद करके। पर सोच पर किस का बस है। दुनिया में अगर कुछ भी घटित होता है तो दिमाग में स्वयं ही चलचित्र बनने लगते हैं। क्योंकि हर दिमाग सोचने केलिए खुद ही समर्थ हैं तो वो सोचेगा ही।इस पर किसी का जोर नहीं।ये तो मानव का स्वाभाविक स्वभाव हैं।और अगर हम सोचेंगे नहीं तो आगे कार्य क्रियान्वित कैसे करेंगे क्या बिना किसी उद्देश्य के या बिना किसी योजना के। इसलिए सोचना तो बनता है। तो सोच निरंतर जारी रहनी चाहिए। इसलिए सोचिये खूब सोचिये पर सोच में चिंतन हो चिंता नहीं।
पारुल शर्मा
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 || पारुल प्रवचन || 
सोच ये सोचकर सोच में पड़ जाती है कि हम क्या सोचें क्या न सोचें और हम क्यूँ सोचें और क्यूँ न सोचें हमारे सोचने से किसी को क्या फर्क पड़ता है और शायद पड़ भी सकता है हमारी सोच सबको सोच में डाल सकती है। फिर लोग क्या सोचेंगे।कुछ तो लोग कहेगे। लोग क्या कहेगे यूँ ही कहेगे या सोचेगे| अगर लोग ऐसे ही सोचते रहे तो हर बार सोच में परिवर्तन लाना लाजमी हैं। तो क्या मैं दिन भर यूँ ही सोचता रहूँगा। मेरे पास और कोई काम धाम नहीं कि मैं अपने बारे में सोचूँ या लोगों की सोच के बारे में ही सोचता रहूँ। लोग हमारे बारे में सोचते ही क्यों हैं क्यों सोच सोच कर घुले जाते हैं हमारे लिए क्या किया है उन्होंने जो सोच सोच कर जले भुने जाते है।भाड़ में जाये लोग और लोगों की सोच सब कुछ सोचने का क्या हमने ही ठेका ले रखा है।पर लोगों का क्या है हम सोचें या न सोचें वो तो सोचेंगे ही। लोग अपने अपने हिसाब से सोचेंगे ही। हम उनकी वजह से क्यूँ सोचें और सोचना भी क्यों बंद करें।अरे दिमाग है तो सोचेंगे ही न।सोच ही तो हमें एक दूसरे से भिन्न करती हैं। सोच ही के कारण तो हमें जीवित होते रहने का आभास होता है।अरे बाबरे मन तू भी क्या कितनी देर से सिर्फ सोचे जा रहा है।कौन सा किला जीत लिया तूने इतना टाइम बर्बाद करके। पर सोच पर किस का बस है। दुनिया में अगर कुछ भी घटित होता है तो दिमाग में स्वयं ही चलचित्र बनने लगते हैं। क्योंकि हर दिमाग सोचने केलिए खुद ही समर्थ हैं तो वो सोचेगा ही।इस पर किसी का जोर नहीं।ये तो मानव का स्वाभाविक स्वभाव हैं।और अगर हम सोचेंगे नहीं तो आगे कार्य क्रियान्वित कैसे करेंगे क्या बिना किसी उद्देश्य के या बिना किसी योजना के। इसलिए सोचना तो बनता है। तो सोच निरंतर जारी रहनी चाहिए। इसलिए सोचिये खूब सोचिये पर सोच में चिंतन हो चिंता नहीं।
पारुल शर्मा
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Parul Sharma

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