हाले गम परछाइयों को अपना जब सुना रहा था कोई अंदर साथ मेरे दर्द अपना गा रहा था थका-थका, तन्हा-सा दूर, कोई खड़ा इक अजनबी ख़ामोशी को वो पहन मेरे करीब आ रहा था इल्म था मुझको कि ये मेरा साया हर पल साथ है लेकिन मेरा साया ही मेरे वजूद को झुठला रहा था बेरंग सी होती हैं अक्सर तन्हाई में परछाइयां फिर भी स्याहे रंग साया मुझको यूं बहला रहा था ऐ समंदर ये बता शब-ए-गुफ्तगू करता तू कैसे डूब जा आंखों में तू बन अश्क ये समझा रहा था