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रात काली है भले पर भोर की आशा तो है पेड़ हैं तो पं

रात काली है भले पर भोर की आशा तो है
पेड़ हैं तो पंक्षियों को नीड़ की आशा तो है
दूर हो तो क्या हुआ फिर भी सदा यादों में हो
इस कहानी के मुकम्मल की अभी आशा तो है

©मोहित यादव ”मुग्ध” #लव #शायरी 
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