उदास शामें दिल में अभी एक शौर बपा है कुछ मुझ में उलझा हुआ है आईने से मुझे यूँ कौन घूरता है जाने कौन सा शख्स मेरी रूह में पोशिदा है कभी साद है आज कल बे आवाज़ है कभी संजीदा कभी रंजीदा है रात के गहरे सन्नाटे में कुछ कहता है दिल की लाखों परतों के नीचे दबा रहता है पत्ता कोई गिरे तो किसी के आने का वहम सा रहता है मन मैं है आखिर कौन वो जो इतना सहमा रहता है कल्ब के किसी खंडर में यादों का मजमा रहता है ऐ मेरी तहरीरो को पढ़ने वालो क्या तुमने किसी का टूटा हुआ मकाँ देखा है पहले चिंगारी फ़िर राख़ और फ़िर धुँआ देखा है गहरी अफसुर्दगी का क्या कोई कुआँ देखा है इख़्तियार में ना हो क्या ऐसा ज़िन्दगी का जुआ देखा है एक जाम की उदास शाम फ़िर शायद इस के बाद सहर ना हो डूबता हुआ सूरज मुझसे कहता है तुम शायद उकता जाओ ऐ राहगीरो ये यादें ख़ामोशी तन्हाई और उदासी इन से तो मेरा गहरा रिश्ता रहता है ©qais majaaz,3rdmaster #smog