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परिचय हो तो ऐसा ------------------ यह परिचय ईश्वर

परिचय हो तो ऐसा
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यह परिचय ईश्वर की सबसे उत्तम रचना मनुष्य की है। इस
तरह का परिचय कुछ प्रतिशत मनुष्य को छोड़ कर बाकी
सभी के लिए है जो इसी श्रेणी में आते हैं जिसमें मैं भी हो 
सकता हूं। मनुष्य हाड़, मांस,बुद्धि ,विवेक से सुसज्जित
ऐसा दोपाया अज्ञानी प्राणी है जो सत्य को जानते हुए भी
उससे जानबूझ कर अनजान रहता है या स्वीकारता ही नहीं।
ज्ञानहीनता यह कि सब मेरा ही तो है। मेरी ही विवेक बुद्धि
से सब चलता है। मैं नहीं रहूंगा तो कौन देखेगा? मेरे जैसा
होशियार,धनवान,बुद्धिमान,ज्ञानवान,बलवान कोई नहीं।
मैंने ही तो किया। और पता नहीं क्या क्या। शायद इन्हीं
कारणों से हैवानियत का तांडव हो रहा है। जबकि सत्य ठीक
इसके विपरीत है। मनुष्य देखता आया है कि जो परदादा का था वो दादा का हुआ, जोड़ा दादा का था वो पिता का हुआ और जो पिता का था अब उसका है।फिर भी भ्रम में जीता है।इसे नादानी या अज्ञानता नहीं तो और क्या कहेंगे।अपना पराया, धन दौलत,शोहरत,ताकत की औकात का पता तब चलता है जब विश्वरचयिता थोड़ा सा ट्रेलर दिखता तब सिवा
उसके कुछ दिखाई नहीं देता। भ्रम में जीना छोड़ो, सत्य को
पहचानो और सुखी रहो।

©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
  एक परिचय ऐसा भी।