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।। शृंगार रस ।। नैना मोरे तरस गए विरह यूं लगन लग

।। शृंगार रस ।।

नैना मोरे तरस गए 
विरह यूं लगन लगी ,

राह निहारत निहारत 
अश्वन धारा बहन लगी ,

मन की पीड़ा मन ही जाने
सुध बुध खोई न खुद में रही

आश लिए मिलन की 
बैरी जग मैं जोगन भई

रास ना आवे दुनियादारी
नाम जो तेरो रटन लगी

आकर कर दो पूर्ण मोहे
गिरधारी तुम संग ऐसी प्रीत लगी

नैना मोरे तरस गए 
विरह यूं लगन लगी*****!

©kanchan Yadav
  #radhakrishn