अब मै थक चुका हूँ बार बार मर क़र भी. क्या उगेगा कभी कोई ऐसा दिन मेरी जिंदगी मे जिसमे मरने का कोई उपक्रम ही न हो . केवल जीना ही जीना हो काश ऐसा सम्भव हो पाता कि मेरे जीवन मे न जन्म होता न मरण होता और मै अपनी रूह की निराकार खोल मे. युगों युगों क़े लिए. इस ब्रह्माण्ड क़े गोल घेरे मे किसी उपग्रह की भाँती चककर लगा रहा होता ©Parasram Arora ब्रह्माण्ड का गोले घेरा......