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गुम्बदों के आगे थिरकते, पांवों के निशान पूर्वजों

गुम्बदों के आगे थिरकते, 
पांवों के निशान पूर्वजों के, 
नशीहत को गा रहा था।
ऐसे में चैन की वंशी के धून में,
पत्थरों में समहृत भावनाएं सुबह 
घंटियों का स्वर सबको जगा रहा था।
आस्था निर्धारित शक्लों में अपने, 
नंगे पांव से दिमाग को जगा रहा था।
ईशान कोण से उतरता विहंगम दृश्य,
आस्थाओं को करबद्ध हाथों से
शून्य की पैठ में अर्चना के पुष्प  
उतरती  गहराईयों में  शान्ति के
दो शब्द आसमां में ढूंढ रहा था।
                     ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌          -राजीव

©RAJIV
  पूजा
rajivkumarsinha3926

RAJIV

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पूजा #कविता

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