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sunset nature गीत :- छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता

sunset nature गीत :-
छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना ।
एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ....

जब तक हम संतोष करेंगे , घुट-घुट के हम सुनो जियेंगे ।
आओ मिलकर बदले सिस्टम , ऐसे न हम आगे बढ़ेंगे ।।
ये न दिए अधिकार हमारा , इन सबने है मन में ठाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ...

नहीं गुजारा होता सबका, मीलो और कारखानों से ।
इतना वेतन कभी न आता , उन ऊँचे बने मकानों से ।।
जला भुनाकर हमको तोड़ें , रुपया घर में बने ठिकाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ...

वही हाल गाँवों में देखा , हमने तो आज किसानों का ।
खाद बीज तो मँहगे-मँहगे , मिलता न दाम आनाजों का ।।
रोता फाँसी खाता रहता , बोलो ये है नया जमाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ....

ऊपर से नफ़रत फैलाना ,  जाति धर्म पर हमें लड़ाना ।
क्या विकास है क्या विनाश है  , क्या ये जनता ने पहचाना ।।
आज सियासत की बिसात पर , बनती जनता सुनो निशाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ....

छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना ।
एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।।

३१/०१ २०२४       -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना ।

एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।।

छोड़ो अब ये रीति पुराना ....


जब तक हम संतोष करेंगे , घुट-घुट के हम सुनो जियेंगे ।
sunset nature गीत :-
छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना ।
एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ....

जब तक हम संतोष करेंगे , घुट-घुट के हम सुनो जियेंगे ।
आओ मिलकर बदले सिस्टम , ऐसे न हम आगे बढ़ेंगे ।।
ये न दिए अधिकार हमारा , इन सबने है मन में ठाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ...

नहीं गुजारा होता सबका, मीलो और कारखानों से ।
इतना वेतन कभी न आता , उन ऊँचे बने मकानों से ।।
जला भुनाकर हमको तोड़ें , रुपया घर में बने ठिकाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ...

वही हाल गाँवों में देखा , हमने तो आज किसानों का ।
खाद बीज तो मँहगे-मँहगे , मिलता न दाम आनाजों का ।।
रोता फाँसी खाता रहता , बोलो ये है नया जमाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ....

ऊपर से नफ़रत फैलाना ,  जाति धर्म पर हमें लड़ाना ।
क्या विकास है क्या विनाश है  , क्या ये जनता ने पहचाना ।।
आज सियासत की बिसात पर , बनती जनता सुनो निशाना ।
छोड़ो अब ये रीति पुराना ....

छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना ।
एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।।

३१/०१ २०२४       -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना ।

एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।।

छोड़ो अब ये रीति पुराना ....


जब तक हम संतोष करेंगे , घुट-घुट के हम सुनो जियेंगे ।

छोड़ो अब ये रीति पुराना , रोता बच्चा दूध पिलाना । एक मातु की व्यथित कहानी , पर सिस्टम का नया बहाना ।। छोड़ो अब ये रीति पुराना .... जब तक हम संतोष करेंगे , घुट-घुट के हम सुनो जियेंगे । #कविता