मौसम ने ली अँगड़ाई है फिर पावस ऋतु आई है। छटा निखर गई चारों तरफ फिर हरियाली छाई है।। सब धूल हट गए पत्तों से कोंपल फूटे शाखाओं पर। चादर सी बिछ गई धरती पर फिर दृश्य खिला दरीचों पर।। सावन के स्वागत में नाचे पिक मोर पपीहा झूम-झूम। बूँदें हर्षित हो बरस रहीं धरती का माथा चूम-चूम।। फिर बागों में झूले लग गए हैं गीत सज गए सावन के। सखियों के संग रस्ता देखें अपने अपने मनभावन के।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #पावस