जानू तो कैसे मुझे हक़ नहीं है वो इतना दूर मुझसे पूछू तो कैसे मुझे हक़ नहीं है कुछ ही महीनो पहले अनजान से वो जान बनी रोकू भी कैसे मुझे हक़ नहीं है फुरसत नहीं है इज्जत नहीं है कहने को मुझे परवाह नहीं है बात एक लम्हे में ख़त्म हुई तो कैसे में मानु ये की बाकी का जीवन नरक नहीं है ©Shubham joshi #दुरी #Art