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पेड़ों में जीवन पलता है... पेड़ों से योवन खिलता ह

पेड़ों में जीवन पलता है...

पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।
अभी समय है जागो प्यारे, स्वारथ में मत भागो प्यारे।
समझो अपना जीवन हारे, कुदरत को जो किया किनारे।
बिन पानी जग सुन्न हुआ, बिना हवा सब छू मंतर।
ज्वाल काल की धधक उठी, सिसक रहे धरती अम्बर।
पंचतत्व जो हुए प्रदुषित, सांसों का सूरज ढलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।

अपने पांवों पर कुल्हाड़ी, इतने भी मत बनों अनाड़ी।
आप अगाडी मौत पिछाडी, यूं ही चलती जाती गाडी।
भावों से जो भ्रष्ट हुआ, मानव के भीतर दानव।
चीरहरण द्रोपदियों का, कलयुग में कितने कौरव!
निज कर्मों का प्रतिफल रावण, युगों-युगों तक भी जलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।

सुख सुविधाएं खूब बटोरी, करके चोरी-सीनाजोरी।
पर तेरे सब बिस्तर-बोरी, ईश्वर के हाथों की डोरी।
नागफनी को पाल रहे, काट दिये तुमने जंगल।
खुद अपनी कब्रें खोदी, माटी को करके दलदल।
हाथ अभी तक साफ किये बस, अब तू हाथों को मलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।

क्या क्या साथ लिये जायेगा, जो बोया वो ही पायेगा।
प्रकृति से जो टकरायेगा, निश्चित ही मुँह की खायेगा।
कितने पर्वत काट दिये, चीख रहा कंकर कंकर।
तांडव की मजबूरी में, बेबस है खुद गिरिशंकर।
रक्तबीज या महिषासुर वो, वरदाता को जो छलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है

©purvarth #ट्री 
#लाइफ
पेड़ों में जीवन पलता है...

पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।
अभी समय है जागो प्यारे, स्वारथ में मत भागो प्यारे।
समझो अपना जीवन हारे, कुदरत को जो किया किनारे।
बिन पानी जग सुन्न हुआ, बिना हवा सब छू मंतर।
ज्वाल काल की धधक उठी, सिसक रहे धरती अम्बर।
पंचतत्व जो हुए प्रदुषित, सांसों का सूरज ढलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।

अपने पांवों पर कुल्हाड़ी, इतने भी मत बनों अनाड़ी।
आप अगाडी मौत पिछाडी, यूं ही चलती जाती गाडी।
भावों से जो भ्रष्ट हुआ, मानव के भीतर दानव।
चीरहरण द्रोपदियों का, कलयुग में कितने कौरव!
निज कर्मों का प्रतिफल रावण, युगों-युगों तक भी जलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।

सुख सुविधाएं खूब बटोरी, करके चोरी-सीनाजोरी।
पर तेरे सब बिस्तर-बोरी, ईश्वर के हाथों की डोरी।
नागफनी को पाल रहे, काट दिये तुमने जंगल।
खुद अपनी कब्रें खोदी, माटी को करके दलदल।
हाथ अभी तक साफ किये बस, अब तू हाथों को मलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है।

क्या क्या साथ लिये जायेगा, जो बोया वो ही पायेगा।
प्रकृति से जो टकरायेगा, निश्चित ही मुँह की खायेगा।
कितने पर्वत काट दिये, चीख रहा कंकर कंकर।
तांडव की मजबूरी में, बेबस है खुद गिरिशंकर।
रक्तबीज या महिषासुर वो, वरदाता को जो छलता है।
पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है

©purvarth #ट्री 
#लाइफ