दो चार फूल खिले हुए, मुद्दतें हुई मिले हुए, अब भी याद तुम्हारी आती है, बगल वाली सीट बुलाती है। तुम याद हो अब तक, बिन बात की मुस्कान बताती है, चुपके से एहसास दिलाती है, कि बगल वाली सीट बुलाती है। एहसास दिल में छुपा के रखें हैं, सब से बचा के रखें हैं, पर आंखें कभी कभी रूलाती हैं, कि बगल वाली सीट बुलाती है। हर बार मैंने ही दिल हारा, तेरी बारी क्यों नहीं आती है, ये बात मुझे अंदर ही अंदर खाए जाती है, कि बगल वाली सीट अब भी बुलाती है। खामोशियां मेरी पसंद नहीं, तेरे सामने आवाज निकल कहां पाती है, मिल कर बात करने की तलब तड़पाती है, कि बगल वाली सीट बुलाती है। नाम लेकर जब भी कुछ कहते हो, सीने से जान निकल जाती है, ये बात दिल से निकल नहीं पाती है, बगल वाली सीट आज भी बुलाती है। दो चार फूल खिले हुए, मुद्दतें हुई मिले हुए, अब भी याद तुम्हारी आती है, बगल वाली सीट बुलाती है। तुम याद हो अब तक, बिन बात की मुस्कान बताती है, चुपके से एहसास दिलाती है, कि बगल वाली सीट बुलाती है।