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कुछ न रहा है बाकी पहन ली है जबसे खाकी || सोच में

कुछ न रहा है बाकी
 पहन ली है जबसे खाकी ||

सोच में आए जब किताब बन साकी 
कर्तव्य खाकी का हर बार वहां ताकी ||

सपनों के खातिर कुछ ना रहा बाकी
 स्वप्न सजाओ जब तो डंडा आकर झांकी||

 सना हाथ शुद्ध प्रेम में जिसका
 कहलाता यहां वह भी पाकी ||

हिम्मत तो है आज भी बाकी 
मगर यहां का छूटता ही नहीं कभी नाका- नाकी||

 दर-दर सर झुकाकर गैरों के आगे भी
 छुट्टी हमारा बिन कांटे ही रह जाता
" पन्नो  में ही बाकी "||

 पहन ली जबसे खाकी
 समय कहां अपनों के खातिर बचा यहां बाकी||

©khushboo kumari
  #Nofear #khaki wardi