तुम भी कितने अजीब हो,, तुम्हारे लिए ही ये दिल आजकल कहाँ से कहाँ घुमता रहता हैं, कभी-कभी तो ये रास्ता भी भूल जाता हैं,, कि मुझे जाना कहाँ हैं,, और चल कहाँ देता हैं.. जैसे ये बस तेरी ही गलियों में आँवरा बनकर घुमता रहता हैं | मेरी ही नज़रों में मुझे पूर्णता की ओर इंगित करता है... एक तेरा साथ इतना प्यारा.. मुझे ही भ्रम में डाल देता हैं, | कि क्या सच में तुम्हारे लिए मेरे मन में प्रेम ही प्रेम बसता जा रहा हैं,,, और तुम उससे बेखबर हों | फिर भी ये आँखें शामों-सहर तेरी गलियों मे तुम्हें ही खोजा करती है | गीता शर्मा प्रणय आँवारा