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तुम भी कितने अजीब हो,, तुम्हारे लिए ही ये दिल आज

तुम भी कितने अजीब हो,, 
तुम्हारे लिए ही ये दिल 
आजकल कहाँ से कहाँ 
घुमता रहता हैं, 
कभी-कभी तो ये रास्ता भी 
भूल जाता हैं,, 
कि मुझे जाना कहाँ हैं,, 
और चल कहाँ देता हैं.. 
जैसे ये बस तेरी ही गलियों में
आँवरा बनकर घुमता रहता हैं |
मेरी ही नज़रों में मुझे पूर्णता
की ओर इंगित करता है... 
एक तेरा साथ इतना प्यारा.. 
मुझे ही भ्रम में डाल देता हैं, |
कि क्या सच में तुम्हारे लिए 
मेरे मन में प्रेम ही प्रेम 
बसता जा रहा हैं,,, 
और तुम उससे बेखबर हों |
फिर भी ये आँखें शामों-सहर
तेरी गलियों मे 
तुम्हें ही खोजा करती है |
गीता शर्मा प्रणय आँवारा
तुम भी कितने अजीब हो,, 
तुम्हारे लिए ही ये दिल 
आजकल कहाँ से कहाँ 
घुमता रहता हैं, 
कभी-कभी तो ये रास्ता भी 
भूल जाता हैं,, 
कि मुझे जाना कहाँ हैं,, 
और चल कहाँ देता हैं.. 
जैसे ये बस तेरी ही गलियों में
आँवरा बनकर घुमता रहता हैं |
मेरी ही नज़रों में मुझे पूर्णता
की ओर इंगित करता है... 
एक तेरा साथ इतना प्यारा.. 
मुझे ही भ्रम में डाल देता हैं, |
कि क्या सच में तुम्हारे लिए 
मेरे मन में प्रेम ही प्रेम 
बसता जा रहा हैं,,, 
और तुम उससे बेखबर हों |
फिर भी ये आँखें शामों-सहर
तेरी गलियों मे 
तुम्हें ही खोजा करती है |
गीता शर्मा प्रणय आँवारा

आँवारा